लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान

बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2634
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान

12

 

शैशवावस्था

 

( Infancy)

 

 

प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।

उत्तर -

शैशवावस्था 2 वर्ष तक की अवस्था है। इस अवस्था के शिशु का विकास इतना अधिक नहीं होता है कि वह अपने क्रियाकलापों को स्वयं कर सके। इस अवस्था में, बालक माता-पिता पर पूर्णतः आश्रित होता है। 3 सप्ताह का शिशु सिर्फ 'रोने' का कार्य ही कर सकता है। बाहरी उद्दीपनों से वह बिल्कुल भी प्रभावित नहीं होता है। आयु बढ़ने के साथ-साथ उसका शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है। धीरे-धीरे उसका माँसपेशियों पर नियन्त्रण बढ़ता जाता है। साथ ही साथ वह आत्मनिर्भर भी होने लगता है। परिणामस्वरूप वह स्वयं खाना खाने, खेलने, चलने आदि क्रियाएँ सीख जाता है।

शैशवावस्था में शारीरिक विकास
(Physical Development During Infancy)

मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन में दो काल तीव्र वृद्धि को प्रदर्शित करते हैं। इन दो कालों के बीच वृद्धि की दर पर्याप्त धीमी तथा स्थिर रहती है। वृद्धि की प्रथम तीव्र अवस्था जन्म के पूर्व शिशु अवस्था तथा प्रारम्भिक बाल्यावस्था होती है। सर्वाधिक वृद्धि गर्भावस्था में होती है।

1. ऊँचाई एवं वजन (Height and Weight) - जन्म के समय आम भारतीय बालक की ऊँचाई 19 से 20 होती है तथा वजन 7 से 8 पौंड। बालकों की ऊँचाई बालक के माता-पिता एवं वंशजों (दादा-दादी नाना एवं इनके माता-पिता) की ऊँचाई द्वारा निर्धारित होती है किन्तु शिशु का वजन माता के भोजन एवं पोषण, परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, व्यायाम, स्वास्थ्य एवं बीमारियों द्वारा प्रभावित होती है। सामान्यतः अधिक ऊँचाई के बालक अधिक वजनयुक्त भी होते हैं।

3 माह के बालक की लम्बाई में जन्म की लम्बाई की तुलना में 20% की वृद्धि होती है। 1 वर्ष में 50% लम्बाई बढ़ जाती है तथा 2 वर्ष में 75% लम्बाई बढ़ जाती हैं 4 वर्ष की आयु में शिशु लम्बाई, जन्म के समय की लम्बाई से दुगुनी हो जाती है। उसी प्रकार, 5 माह में शिशु का वजन, जन्म के समय के वजन की तुलना में दुगना हो जाता है। 1 वर्ष में शिशु का वजन वजन तीन गुना हो जाता है तथा 2.5 वर्श में वजन चार गुना हो जाता है ( Stuart & Stevenson, 1954)।

2. कंकालीय एवं माँसपेशियों का विकास (Skeleton and Muscular Development) - बालक का कंकालीय विकास गर्भ में ही आरम्भ हो जाता है। जन्म के उपरान्त प्रथम वर्ष में अस्थियों की संख्या एवं रचना में तेजी से अन्तर आता है। जन्म के समय शिशु की अधिकांश अस्थियाँ नर्म तथा लचीली होती हैं। शरीर के कुछ भागों में तो अस्थियाँ होती ही नहीं हैं। उदाहरण के लिये, सिर के तालू पर (Fountanelles)। शिशु के सिर का ऊपरी भाग अत्यन्त नर्म तथा नाजुक होता है। इस स्थान पर खोपड़ी की अस्थियों का विकास नहीं हो पाता है तथा मस्तिष्क का भाग इस स्थान पर कठोर आवरण से ढका नहीं होता है। धीरे-धीरे अस्थियाँ विकसित होकर मस्तिष्क के इस भाग को भी ढक लेती हैं तथा दो वर्ष में यह नाजुक तथा लचीला भाग कठोर हो जाता है।

नवजात शिशु के शरीर में लगभग 270 हड्डियाँ होती हैं। ये अत्यन्त लचीली होती हैं। बालक 13-14 वर्ष की आयु तक पहुँचते-पहुँचते हड्डियों की संख्या 250 हो जाती हैं किन्तु परिपक्वता की आयु तक पहुँचते-पहुँचते हड्डियों की संख्या कुल 206 रह जाती हैं। इसका कारण है- कैलसीकरण के कारण छोटी अस्थियों का जुड़ जाना। अस्थियों के जुड़ने के साथ-साथ उनमें कठोरता भी आती जाती है। शरीर के विभिन्न भागों की अस्थियों के कठोर होने की गति भिन्न-भिन्न रहती है। सबसे पहले कलाई तथा हाथों की हड्डियाँ कठोरता प्राप्त करती हैं। इसी कारण शिशु में वस्तुओं को 'पकड़ने' (Grasp) उठाने (pick them up) तथा हाथों व कलाई के द्वारा घुमाने की कुशलता आती है।

3. शारीरिक अनुपात (Body Proposition) - आरम्भ में बालक के शरीर का अनुपात एकदम भिन्न होता है हम इसे असमानुपातिक भी कह सकते हैं। बालक के विभिन्न अंग अवयव विभिन्न दर से बढ़ते हैं अतः एक साथ परिपक्वता प्राप्त नहीं करते। शिशु के शरीर में विभिन्न अवयवों का अनुपात निम्नलिखित पाया जाता है-

शिशु का सिर शरीर के 1 : 4 के अनुपात में होता है अर्थात् शरीर के बराबर चार भाग किये जायें तो एक भाग सिर को मिलेगा।

4. शरीर रचना (Physical Structure) - शरीर रचना व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण अंग है। शरीर का आकार व स्वास्थ्य आदि तत्व बालक की सामाजिक क्रिया-प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करते हैं। इस कारण शारीरिक विकास का महत्व बहुत अधिक है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि शारीरिक विकास लगभग समस्त क्षेत्रों के विकास पर आधारित है। विशेष तौर पर प्रारम्भिक जीवन के शारीरिक विकास का महत्त्व अधिक है, क्योंकि यह वृद्धि एवं विकास का प्रारम्भिक काल है। इस कारण इस आयु के सामान्य शारीरिक प्रतिमानों का ज्ञान आवश्यक है। इसके आधार पर हम यह ज्ञात कर सकते हैं कि बालक के शारीरिक विकास की स्थिति क्या है? यदि किसी क्षेत्र में शारीरिक विकास और वृद्धि उन प्रतिमानों की तुलना में कम हो तो शीघ्र प्रयत्न कर उसमें सुधार किया जा सकता है।

शिशु का चेहरा सिर की अपेक्षा छोटा होता है। बालक का धड़ सिर की अपेक्षा धीमी गति से विकसित होता है। गर्दन रेखा स्पष्ट न होने से धड़ चौड़ा एवं कन्धे ऊँचे लगते हैं। बालक के हाथ-पैर शरीर के अन्य अंगों के अनुपात में छोटे पाये जाते हैं। जन्म के समय बालक की टाँगें सीधी होती जाती हैं। 6 वर्ष की आयु तक टाँगें पूर्णरूपेण सीधी हो जाती हैं।

5. स्वास्थ्य (Health Condition) - बालक का स्वास्थ्य जन्म के समय के स्वास्थ्य, पोषण, स्वच्छता आदि पर निर्भर करता है। शैशव काल में सर्वाधिक पाचन सम्बन्धी अवस्थाएँ तथा सामान्य तापमान से असमायोजन की परेशानी पायी जाती है।

6. दाँत का विकास (Development of Teeth) - दाँतों के विकास की प्रक्रिया भी गर्भ में आरम्भ हो जाती है। गर्भकाल के पाँचवें माह में दाँतों की नींव पड़ जाती है। जन्म के पश्चात् औसतन 6 से 9 माह के मध्य पहला दाँत निकलता है। सामान्यतः नीचे का दाँत पहले दिखाई पड़ता है किन्तु यह आवश्यक नहीं है। दाँत निकलने की प्रक्रिया में बालक का स्वास्थ्य बहुत योगदान देता है। स्वस्थ बालकों के दाँत जल्दी निकलते हैं तथा कमजोर बालकों के देर से निकलते हैं। 2 वर्ष की आयु तक 20 दाँत निकल आते हैं तथा ये सभी दाँत अस्थायी होते हैं।

शैशवावस्था में क्रियात्मक विकास
(Motor Development During Infancy)

प्रारम्भिक काल में बालक का क्रियात्मक विकास महत्त्वपूर्ण होता है। विभिन्न अंगों के क्रियात्मक विकास के उदय, प्रकार आदि के द्वारा बालक के भविष्य के सम्पूर्ण विकास की सम्भावनाओं का अन्दाजा लगाया जा सकता है। प्रारम्भिक क्रियात्मक विकास के आधार पर ही बालक के मानसिक विकास के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

(i) आँखों का सुसंचालन - आँख की हलचलों का नियन्त्रण पर्याप्त प्रारम्भिक काल में हो जाता है। जन्म के 12 घण्टे बाद ही आँखों को कुछ मिनट तक किसी निरन्तर घूमती वस्तु पर टिकाने की क्षमता आ जाती है। नेत्र अनुसरण गति (Occular Pursuit Movement) जन्म के तीसरे, चौथे सप्ताह में विकसित हो जाती है। क्षैतिजीय (Horizontal) आँख की हलचलें 2-3 माह में विकसित होती हैं। ऊर्ध्वाधर (Vertical) आँख की हलचलें 3 से 4 माह में विकसित हो जाती हैं। वृत्ताकार आँखों की हलचलों का विकास अनेक सप्ताह बाद विकसित होता है।

आँख-हाथ संचालन अर्थात् आँख की दिशा में हाथ की हलचल करने की योग्यता का विकास 6-7 माह से प्रारम्भ हो जाता है। इस विकास के साथ ही बालक की किसी वस्तु का पकड़ने के लिए बेतरतीब क्रियाओं के स्थान पर निश्चित क्रियायें प्रारम्भ हो जाती हैं। अब वह जिस वस्तु को पकड़ना चाहता है, उसे पकड़ सकता है। 11 वर्ष की आयु तक वस्तु तक पहुँचने की क्रिया में पर्याप्त परिपक्वता आ जाती है।

(ii) हाथों, भुजाओं तथा उंगलियों का उपयोग (Prehension, Use of Arms, Hands and Fingers) - जब हम किसी वयस्क को सुई पिरोते अथवा अन्य कोई इसी प्रकार का कार्य करते देखते हैं तो हमें उसमें कोई विशेष बात नहीं दिखाई देती है परन्तु यह कह सकते हैं कि वयस्क के इस क्रियात्मक विकास के पीछे विकास का लम्बा इतिहास होता है।

प्रारम्भ में बालक यदि किसी व्यक्ति के पास पहुँचना चाहता है तो उसकी क्रियायें उसकी क्रियायें मुख्यतया कन्धों व कोहनी की हलचल के रूप में होती हैं। अपने लक्ष्य तक पहुँचने में अक्सर वह असफल हो जाता है। उसकी क्रियायें स्पष्ट नहीं होती हैं। प्रारम्भ में यदि वह मूँगफली के ढेर से मूंगफली उठाना चाहता है तो सारे ढेर को फैला देता है पर फिर भी उसके हाथों में एक भी मूँगफली नहीं आती है। धीरे-धीरे बालक अपनी कलाई की हरकतें इच्छानुसार करने के योग्य हो जाता है। उसकी लक्ष्य तक पहुँचने की क्रिया अधिक स्पष्ट हो जाती है, अपने हाथों को घुमा सकता है तथा हाथों से इच्छानुसार वस्तु को पकड़ सकता है।

पकड़ने (Grasping) की क्रिया प्रारम्भिक प्रयत्नों में वह अपने अँगूठे का उपयोग लगभग नहीं करता है। वस्तु को पकड़ने के लिए वह केवल अंगुलियों तथा हथेली का उपयोग करता है धीरे-धीरे वह अँगूठे तथा अंगुलियों के ऊपरी छोर से वस्तु पकड़ना सीख जाता है। 24 सप्ताह की आयु तक, किसी वस्तु तक पहुँचने के लिए तीन निश्चित क्रियायें की जाती हैं—अपने हाथ को उठाना, हाथों को गोलाकार में आगे बढ़ाना तथा फिर हाथों को नीचे करना। अन्त में लगभग 40 सप्ताह में यह क्रिया एक सम्पूर्ण क्रिया के रूप में होने लगती है जिसमें पृथक् पृथक् उपरोक्त तीन क्रियायें स्पष्टता दिखाई नहीं देती हैं।

(iii) चलना (Locomotion) - क्रियात्मक विकास की चरम सीमा पर पहुँचकर बालक चलना सीखता है। बालक के चलने अथवा स्वतन्त्र रूप से खड़े होने की क्रिया की भूमिका, वास्तविक क्रिया के काफी पहले से प्रारम्भ ही जाती है (Easton 1972 Zelazo & Kalb 1972), चलने की क्रिया पाँवों से प्रारम्भ नहीं होती है परन्तु ऊपरी धड़ तथा भुजाओं की माँसपेशियों से प्रारम्भ होती है।

बच्चों की चलने की क्रिया प्रारम्भ होने की कोई निश्चित आयु नहीं दी जा सकती है। चलने की क्रिया के सम्बन्ध में बालकों में पर्याप्त व्यक्तिगत विभिन्नतायें पाई जाती हैं परन्तु चलने के सम्बन्ध में होने वाले विभिन्न कौशलों का क्रम अकसर एक समान रहता है। शर्ली (Shirley, 1931) चलने की क्रिया के पहले होने वाली विभिन्न क्रियाओं की अनेक अवस्थाओं का वर्णन करती है। सर्वप्रथम शरीर के ऊपरी भाग (Postural Control) का विकास होता है। इसके अन्तर्गत पहले सिर को उठाने की क्षमता तथा बाद में धड़ को उठाने की क्षमता का विकास होता है। सिर की हलचलों पर नियन्त्रण करना विकसित होता है। किसी सहारे से गोद में बैठ पाने की क्षमता का विकास होता है। इसके बाद एक दो क्षण और फिर अधिक देर तक अकेला बैठ पाने के कौशल का विकास होता है। रेंगना सीखने के पहले बच्चा खींचने, धकेलने अथवा तैरने के समान क्रियाओं द्वारा शरीर को आगे-पीछे खींच पाने की क्षमता का विकास कर लेता है। सामान्यतया 2 सप्ताह में स्वस्थ बालक फर्नीचर पकड़कर खड़ा होना सीख लेता है। लगभग 45 सप्ताह में बालक रेंगना सीख जाता है, 62 सप्ताह में अकेले खड़े होना सीख जाता है तथा 65 सप्ताह में अकेले चलना सीख जाता है।

(iv) क्रियात्मक विकास के अन्य पहलू-चलने की योग्यता प्राप्त कर लेने पर बालक के अन्य विशिष्ट कौशलों का विकास विशिष्ट अवसरों की प्राप्ति पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, तैरना वे ही बालक सीख पाते हैं, जिन्हें तैरने के अवसर प्राप्त हों। चलना सीखने के पश्चात् अन्य क्रियात्मक कौशलों के विकास के सम्बन्ध में बेली ने अध्ययन किया।

(v) पहिये वाले खिलौनों का उपयोग - जोन्स (Jones, 1939) ने 21 से 48 माह के 24 बच्चों के निरीक्षण के आधार पर कुछ तथ्यों का वर्णन किया है।

10 माह में एक बालक कमरे में रखी एक खिलौना गाड़ी तक रेंग कर पहुँच गया। उसने उसके अन्दर झाँका, फिर उसके किनारे पकड़ अपने को थोड़ा ऊपर उठाया। उसकी खुरदुरी सतह पर अंगुलियाँ फेरी। फिर गाड़ी को छोड़कर दूसरी ओर को रेंगकर जाने लगा, परन्तु गाड़ी को हल्का सा धक्का लगा दिया। उसका रुचि का विस्तार कुल 35 सैकण्ड रहा।

इसी प्रकार के अन्य निरीक्षण के आधार पर जोन्स ने यह निष्कर्ष निकाला कि आयु वृद्धि के साथ-साथ गाड़ी से अधिक खेल खेलना बालक आरम्भ कर देता है। 48 माह में बालक पहिया गाड़ी के साथ विविध प्रकार से खेलने लगता है। वह उसे खींचता है, धक्का देता है, घुमाता है, गाड़ी में सामान भर कर ले जाता है। गाड़ी के खेल में 48 माह में दो विशिष्ट बातें दिखाई देती हैं-

(a) गाड़ी के साथ काल्पनिक खेल खेलता है, जैसे मैं गाड़ी हूँ।

(b) गाड़ी में खड़ा होकर हैन्डल को घुमाता है तथा किसी बड़े बच्चे से गाड़ी को धक्का लगाने को कहता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पारम्परिक गृह विज्ञान और वर्तमान युग में इसकी प्रासंगिकता एवं भारतीय गृह वैज्ञानिकों के द्वारा दिये गये योगदान की व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- NIPCCD के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- 'भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद' (I.C.M.R.) के विषय में विस्तृत रूप से बताइए।
  4. प्रश्न- केन्द्रीय आहार तकनीकी अनुसंधान परिषद (CFTRI) के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- NIPCCD से आप समझते हैं? संक्षेप में बताइये।
  6. प्रश्न- केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान के विषय में आप क्या जानते हैं?
  7. प्रश्न- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  8. प्रश्न- कोशिका किसे कहते हैं? इसकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा जीवित कोशिकाओं के लक्षण, गुण, एवं कार्य भी बताइए।
  9. प्रश्न- कोशिकाओं के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्लाज्मा झिल्ली की रचना, स्वभाव, जीवात्जनन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- माइटोकॉण्ड्रिया कोशिका का 'पावर हाउस' कहलाता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  12. प्रश्न- केन्द्रक के विभिन्न घटकों के नाम बताइये। प्रत्येक के कार्य का भी वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- केन्द्रक का महत्व समझाइये।
  14. प्रश्न- पाचन तन्त्र का सचित्र विस्तृत वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- पाचन क्रिया में सहायक अंगों का वर्णन कीजिए तथा भोजन का अवशोषण किस प्रकार होता है?
  16. प्रश्न- पाचन तंत्र में पाए जाने वाले मुख्य पाचक रसों का संक्षिप्त परिचय दीजिए तथा पाचन क्रिया में इनकी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- आमाशय में पाचन क्रिया, छोटी आँत में भोजन का पाचन, पित्त रस तथा अग्न्याशयिक रस और आँत रस की क्रियाविधि बताइए।
  18. प्रश्न- लार ग्रन्थियों के बारे में बताइए तथा ये किस-किस नाम से जानी जाती हैं?
  19. प्रश्न- पित्ताशय के बारे में लिखिए।
  20. प्रश्न- आँत रस की क्रियाविधि किस प्रकार होती है।
  21. प्रश्न- श्वसन क्रिया से आप क्या समझती हैं? श्वसन तन्त्र के अंग कौन-कौन से होते हैं तथा इसकी क्रियाविधि और महत्व भी बताइए।
  22. प्रश्न- श्वासोच्छ्वास क्या है? इसकी क्रियाविधि समझाइये। श्वसन प्रतिवर्ती क्रिया का संचालन कैसे होता है?
  23. प्रश्न- फेफड़ों की धारिता पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- बाह्य श्वसन तथा अन्तःश्वसन पर टिप्पणी लिखिए।
  25. प्रश्न- मानव शरीर के लिए ऑक्सीजन का महत्व बताइए।
  26. प्रश्न- श्वास लेने तथा श्वसन में अन्तर बताइये।
  27. प्रश्न- हृदय की संरचना एवं कार्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- रक्त परिसंचरण शरीर में किस प्रकार होता है? उसकी उपयोगिता बताइए।
  29. प्रश्न- हृदय के स्नायु को शुद्ध रक्त कैसे मिलता है तथा यकृताभिसरण कैसे होता है?
  30. प्रश्न- धमनी तथा शिरा से आप क्या समझते हैं? धमनी तथा शिरा की रचना और कार्यों की तुलना कीजिए।
  31. प्रश्न- लसिका से आप क्या समझते हैं? लसिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- रक्त का जमना एक जटिल रासायनिक क्रिया है।' व्याख्या कीजिए।
  33. प्रश्न- रक्तचाप पर टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- हृदय का नामांकित चित्र बनाइए।
  35. प्रश्न- किसी भी व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति का रक्त क्यों नहीं चढ़ाया जा सकता?
  36. प्रश्न- लाल रक्त कणिकाओं तथा श्वेत रक्त कणिकाओं में अन्तर बताइए?
  37. प्रश्न- आहार से आप क्या समझते हैं? आहार व पोषण विज्ञान का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध बताइए।
  38. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए। (i) चयापचय (ii) उपचारार्थ आहार।
  39. प्रश्न- "पोषण एवं स्वास्थ्य का आपस में पारस्परिक सम्बन्ध है।' इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  40. प्रश्न- अभिशोषण तथा चयापचय को परिभाषित कीजिए।
  41. प्रश्न- शरीर पोषण में जल का अन्य पोषक तत्वों से कम महत्व नहीं है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- भोजन की परिभाषा देते हुए इसके कार्य तथा वर्गीकरण बताइए।
  43. प्रश्न- भोजन के कार्यों की विस्तृत विवेचना करते हुए एक लेख लिखिए।
  44. प्रश्न- आमाशय में पाचन के चरण लिखिए।
  45. प्रश्न- मैक्रो एवं माइक्रो पोषण से आप क्या समझते हो तथा इनकी प्राप्ति स्रोत एवं कमी के प्रभाव क्या-क्या होते हैं?
  46. प्रश्न- आधारीय भोज्य समूहों की भोजन में क्या उपयोगिता है? सात वर्गीय भोज्य समूहों की विवेचना कीजिए।
  47. प्रश्न- “दूध सभी के लिए सम्पूर्ण आहार है।" समझाइए।
  48. प्रश्न- आहार में फलों व सब्जियों का महत्व बताइए। (क) मसाले (ख) तृण धान्य।
  49. प्रश्न- अण्डे की संरचना लिखिए।
  50. प्रश्न- पाचन, अभिशोषण व चयापचय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- आहार में दाल की उपयोगिता बताइए।
  52. प्रश्न- दूध में कौन से तत्व उपस्थित नहीं होते?
  53. प्रश्न- सोयाबीन का पौष्टिक मूल्य व आहार में इसका महत्व क्या है?
  54. प्रश्न- फलों से प्राप्त पौष्टिक तत्व व आहार में फलों का महत्व बताइए।
  55. प्रश्न- प्रोटीन की संरचना, संगठन बताइए तथा प्रोटीन का वर्गीकरण व उसका पाचन, अवशोषण व चयापचय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों, साधनों एवं उसकी कमी से होने वाले रोगों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- 'शरीर निर्माणक' पौष्टिक तत्व कौन-कौन से हैं? इनके प्राप्ति के स्रोत क्या हैं?
  58. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण कीजिए एवं उनके कार्य बताइये।
  59. प्रश्न- रेशे युक्त आहार से आप क्या समझते हैं? इसके स्रोत व कार्य बताइये।
  60. प्रश्न- वसा का अर्थ बताइए तथा उसका वर्गीकरण समझाइए।
  61. प्रश्न- वसा की दैनिक आवश्यकता बताइए तथा इसकी कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों को बताइए।
  62. प्रश्न- विटामिन से क्या अभिप्राय है? विटामिन का सामान्य वर्गीकरण देते हुए प्रत्येक का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- वसा में घुलनशील विटामिन क्या होते हैं? आहार में विटामिन 'ए' कार्य, स्रोत तथा कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिये।
  64. प्रश्न- खनिज तत्व क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के आवश्यक खनिज तत्वों के कार्यों तथा प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- शरीर में लौह लवण की उपस्थिति, स्रोत, दैनिक आवश्यकता, कार्य, न्यूनता के प्रभाव तथा इसके अवशोषण एवं चयापचय का वर्णन कीजिए।
  66. प्रश्न- प्रोटीन की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  67. प्रश्न- क्वाशियोरकर कुपोषण के लक्षण बताइए।
  68. प्रश्न- भारतवासियों के भोजन में प्रोटीन की कमी के कारणों को संक्षेप में बताइए।
  69. प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
  70. प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
  71. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
  73. प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
  74. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
  75. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
  76. प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
  77. प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
  78. प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
  79. प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
  80. प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
  81. प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
  83. प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
  84. प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
  85. प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
  86. प्रश्न- खनिज क्या होते हैं? मेजर तत्व और ट्रेस खनिज तत्व में अन्तर बताइए।
  87. प्रश्न- लौह तत्व के कोई चार स्रोत बताइये।
  88. प्रश्न- कैल्शियम के कोई दो अच्छे स्रोत बताइये।
  89. प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
  90. प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
  91. प्रश्न- “भाप द्वारा पकाया भोजन सबसे उत्तम होता है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  92. प्रश्न- भोजन विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
  93. प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
  95. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
  96. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  97. प्रश्न- वंशानुक्रम से आप क्या समझते है। वंशानुक्रम का मानवं विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  98. प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
  99. प्रश्न . विकास एवं वृद्धि से आप क्या समझते हैं? विकास में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से हैं?
  100. प्रश्न- विकास के प्रमुख नियमों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कीजिए।
  101. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
  103. प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
  104. प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  105. प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
  106. प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
  107. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
  108. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
  109. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
  110. प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
  111. प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
  113. प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
  114. प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
  115. प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
  116. प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
  117. प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
  118. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  119. प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
  120. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
  121. प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
  122. प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
  123. प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
  124. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  125. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  126. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
  127. प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
  128. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
  129. प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
  130. प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
  131. प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
  132. प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
  133. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
  134. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  135. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
  136. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
  137. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
  139. प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
  140. प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
  141. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  142. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
  143. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
  144. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book